सब-सॉइलर चलाएं, विपरीत मौसम में अच्छा उत्पादन पायें

लेखन: डॉ. वी. एम. मायन्दे, भूतपूर्व कुलपति, महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, अकोला, (महारष्ट्र)
डॉ. देवव्रत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय, इंदौर (म.प्र.), भारत 
वर्तमान समय में प्राकृतिक असंतुलन के चलते मौसम में भारी अनिश्चितता व्याप्त है। वर्षा की मात्रा, अवधि और समय निश्चित नहीं रह गया है। खरीफ के सीजन में किसानों के पास इतना समय नहीं होता है कि वे किसी फसल विशेष के अनुसार व्यवस्था कर सकें। सोयाबीन को ही लें, यह ऐसी फसल है, जो अनावृष्टि अथवा अतिवृष्टि से अत्यधिक प्रभावित होती है। समय पर वर्षा होना, अतिवृष्टि के साथ खेतों में पानी भर जाना - यदि ऐसी स्थितियां निर्मित हो जाएं तो किसान को अपेक्षित मात्रा में उत्पादन नहीं मिल पाता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए खेतों में सब-सॉइलर चलाएं। विपरीत मौसम में अपने खेतों में सब-सॉइलर चलाकर किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।
कैसे  करें सब-सॉइलर का उपयोग
सब-सॉइलर खेतों को गहराई तक हलने वाला यंत्र है। सब-सॉइलर से खेत में नाली बनाने के लिए 55 हार्सपॉवर के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। इसकी सहायता से किसान अपने खेतों में ढाई इंच चौड़ी एवं ढाई फुट गहरी नाली बना सकते हैं। सब-सॉइलर की कम से कम 15 फीट के अंतर से नाली बनाएं। खेतों में सब-सॉइलर चलाने का सही समय 15 मई से 30 मई के बीच होता है। रबी मौसम के पश्चात गेहूं और चना की फसल निकलने के पश्चात सब-सॉइलर चलाया जा सकता है।
कल्टीवेटर से तैयार करें खेत
किसान इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सब-सॉइलर से नाली बनाने के पश्चात किसान कल्टीवेटर से खेत तैयार करें। जहां तक संभव हो, पंजे का इस्तेमाल नहीं करें। यदि कल्टीवेटर चलाते हैं तो जमीन में पानी तेजी से उतरता है।
बरतें सावधानी
जहाँ तक संभव हो पंजा नहीं चलाएं, पंजा चलाने से पानी धीमे-धीमे जमीन में उतरता है। ऐसा देखा गया है, पंजा खेत में हार्ड लेयर का निर्माण करता है, इससे पानी खेत में रुक जाता है। पंजे से तैयार खेत में पानी या तो खड़ा रहता है अथवा तेजी से बह जाता है। अतिवृष्टि के दौरान जब खेत से पानी तेजी से बहता है तो वह मिट्टी का क्षरण करता है। तेज बहता पानी अपने साथ उपजाऊ मृदा, पोषक तत्व आदि भी बहा ले जाता है। कई बार पानी के साथ बीज भी बह जाते हैं, अथवा बीज पर अतिरिक्त मिट्टी चढऩे से जमीन में अधिक गहराई में चले जाते हैं और अंकुरण नहीं होता। दोबारा बोवनी करनी पड़ती है, खर्च बढ़ता है।
दूसरी ओर, यदि लंबे समय तक खेत में पानी खड़ा रहता है तो सोयाबीन फसल की जड़ों में बनने वाली गठानें विकसित नहीं हो पाती हैं। इस दशा में सोयाबीन फसल वातावरण में उपलब्ध नाइट्रोजन तत्व नहीं खींच पाती है। ऐसे में फसल पीली पड़ जाती है। किसानों को अतिरिक्त उर्वरक  जैसे डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) आदि का उपयोग करना पड़ता है और खर्च बढ़ता है।
बी.बी.एफ. पद्धति अपनायें
खेत तैयार होने के पश्चात सोयाबीन का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसान ब्रॉड बेड फरो (बीबीएफ) पद्धति से बोवनी करें। इसके लिए किसान दो नाली वाली बीबीएफ मशीन का उपयोग करें। जहां तक संभव हो बेड के ऊपर 4 अथवा 5 कतार में ही बोवनी की जाए। किसान नाली से नाली की दूरी 220 सेंटीमीटर रखे। इससे 200 सेंटीमीटर के बेड का निर्माण होता है। किसान पौधे से पौधे की दूरी भी नियंत्रित करें। चूंकि रबी में चने की फसल भी वर्षा से प्रभावित होती है, इसमें भी ये पद्धति लाभकारी सिद्ध हुई है। कई किसान हैं जो वर्तमान में इस पद्धति से रबी के मौसम में चने की फसल ले रहे हैं।
सब-सॉइलर के लाभ
सब-सॉइलर एवं कल्टीवेटर से खेत तैयार करने से दोहरा लाभ मिलता है। किसान जब खेतों में सब-सॉइलर चलाकर ढाई फीट गहरी नाली का निर्माण करते हैं तो वर्षा काल में बरसा पानी सीधे जमीन में उतर जाता है। सामान्य से अधिक पानी बरसने पर भी बेड पर खड़ी फसलों को हानि नहीं होती है। वहीं, दूसरी ओर ये पानी जमीन के नीचे संग्रहित रहता है। वर्षा की लंबी खेंच की स्थिति निर्मित हो, ऐसे में फसल को जब पानी की आवश्यकता हो तो यही वर्षा जल जीवनदायी साबित होता है। सोयाबीन में पुष्पन और फलन की दशा में जब पानी की अत्यंत आवश्यकता होती है, यही पानी धीरे-धीरे ऊपर उठता है। फसल को लंबे समय तक आपूर्ति करके जीवित रखता है, पौधों में तनाव नहीं बढऩे देता। इस प्रकार सोयाबीन फसल प्रभावित नहीं होती। पीली नहीं पड़ती। इस प्रकार सब-सॉइलर चलाने से किसानों को उत्पादन में कमी नहीं आती है।
किसान इस बात की विशेष सावधानी रखें कि जहां धान की फसल लेनी हो, उस खेत में सब-सॉइलर नहीं चलाएं। साथ ही ऐसे खेत जहां मुरम हो या जमीन पथरीली हो वहां भी सब-सॉइलर उपयोगी नहीं है। किसान इस यंत्र को खेत के 1-2 बीघा रकबे के हिस्से में चलाकर पूर्व में इससे होने वाले फायदे-नुकसान को परख सकते हैं।
बीज परीक्षण आवश्यक
सोयाबीन के बीज बहुत संवेदनशील होते हैं, जिनकी अंकुरण क्षमता तापक्रम के अनुसार तेजी से प्रभावित होती है। इसलिए किसान बीज परीक्षण करके ही बोवनी करें। बुवाई करने के पूर्व बीजोपचार अवश्य करें ताकि भली प्रकार अंकुरण हो।